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Writer's pictureAbhishek Singh

OSI मॉडल क्या है? – What is OSI model in Hindi?

इस पोस्ट में हम what is OSI Model in Hindi and 7 layers (OSI मॉडल क्या है तथा इसकी 7 लेयर) के बारें बहुत ही आसान भाषा में पढेंगे तथा इसके लाभ, हानियाँ, लेयर क्या है इसके बारें में विस्तार से पढेंगे. तो चलिए start करते हैं:-

OSI Model in Hindi – ओएसआई मॉडल क्या है?



  • OSI model का पूरा नाम Open System Interconnection है इसे ISO (International Organization for Standardization) ने 1978 में विकसित किया था और इस मॉडल में 7 layers होती है।

  • ओएसआई मॉडल किसी नेटवर्क में दो यूज़र्स के मध्य कम्युनिकेशन के लिए एक reference मॉडल है। इस मॉडल की प्रत्येक लेयर दूसरे लेयर पर निर्भर नही रहती है लेकिन एक लेयर से दूसरे लेयर में डेटा का ट्रांसमिशन होता है।

  • OSI मॉडल एक रेफेरेंस मॉडल है अर्थात् इसका इस्तेमाल real life में नही होता है बल्कि इसका इस्तेमाल केवल reference (संदर्भ) के रूप में किया जाता है.

  • OSI model यह बताता है कि किसी नेटवर्क में डेटा या सूचना कैसे send तथा receive होती है। इस मॉडल के सभी layers का अपना अलग अलग काम होता है जिससे कि डेटा एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम तक आसानी से पहुँच सके।

  • OSI मॉडल यह भी describe करता है कि नेटवर्क हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर एक दूसरे के साथ लेयर के रूप में कैसे कार्य करते है।

  • इस मॉडल की 7 लेयर होती है और प्रत्येक लेयर का अपना एक विशेष कार्य होता है.

7 Layers of OSI MODEL IN HINDI – ओ एस आई मॉडल की लेयर



OSI model में निम्नलिखित 7 layers होती हैं आइये इन्हें विस्तार से जानते है:-


PHYSICAL LAYER (फिजिकल लेयर)

OSI model में physical लेयर सबसे नीचे की लेयर है। यह लेयर फिजिकल तथा इलेक्ट्रिकल कनेक्शन के लिए जिम्मेदार रहता है जैसे:- वोल्टेज, डेटा रेट्स आदि। इस लेयर में डिजिटल सिग्नल, इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल जाता है।

इस लेयर में नेटवर्क की topology अर्थात layout of network (नेटवर्क का आकार) का कार्य भी इसी लेयर में होता है। फिजिकल लेयर यह भी describe करता है कि कम्युनिकेशन wireless होगा या wired होगा। फिजिकल लेयर को बिट यूनिट भी कहा जाता है।

Physical Layer के कार्य

  1. फिजिकल लेयर यह बताता है कि दो या दो से ज्यादा devices आपस में physically कैसे connect होती है.

  2. फिजिकल लेयर यह भी बताता है कि नेटवर्क में दो डिवाइसों के बीच किस transmission mode का इस्तेमाल किया जायेगा. ट्रांसमिशन मोड तीन प्रकार के होते हैं:- simplex, half-duplex, और full duplex.

  3. यह information को ट्रांसमिट करने वाले सिग्नल को निर्धारित करता है.

  4. यह नेटवर्क टोपोलॉजी के कार्य को पूरा करता है.

Data link layer (डेटा लिंक लेयर)

OSI Model में डेटा लिंक लेयर नीचे से दूसरे नंबर की लेयर है। इस लेयर को फ्रेम यूनिट भी कहा जाता है. इस लेयर में नेटवर्क लेयर द्वारा भेजे गए डेटा के पैकेटों को decode और encode किया जाता है तथा यह लेयर यह भी सुनिश्चित करता है कि डेटा के पैकेट्स में कोई error (त्रुटी) ना हो.

इस लेयर की दो sub-layers होती है:-

  1. MAC (मीडिया एक्सेस कण्ट्रोल),

  2. LLC (लॉजिक लिंक कण्ट्रोल)

डेटा लिंक लेयर में डेटा ट्रांसमिशन के लिए दो प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया जाता है.

  1. HDLC (High-Level Data Link Control)

  2. PPP (Point-to-Point Protocol)

डेटा लिंक लेयर के कार्य

  1. यह लेयर data packets को एनकोड और डिकोड करता है. इन data packets को हम frames कहते है.

  2. यह लेयर इन frames में header और trailer को add करने का काम करती है.

  3. डेटा लिंक लेयर का मुख्य कार्य flow control करना है. इसमें receiver और sender दोनों तरफ से एक निश्चित data rate को maintain किया जाता है. जिससे कि कोई भी data ख़राब( corrupt) ना हो.

  4. यह error को भी control करता है. इसमें फ्रेम के trailer के साथ CRC (cyclic redundancy check) को add किया जाता है जिससे डेटा में कोई error ना आये.

  5. इसका काम access control का भी होता है. जब दो या दो से अधिक devices एक communication channel से जुडी रहती है तब यह layer यह निर्धारित करती है कि किस डिवाइस को access दिया जाए.


Network layer (नेटवर्क लेयर)

नेटवर्क लेयर OSI model का तीसरा लेयर है, इस लेयर को पैकेट यूनिट भी कहा जाता है। इस लेयर में switching तथा routing तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस Layer का कार्य डिवाइसों को लॉजिकल एड्रेस अर्थात I.P. address प्रदान करना होता है.

नेटवर्क लेयर में जो डेटा होता है वह data packets के रूप में होता है और इन डेटा पैकेटों को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस तक पहुँचाने का काम नेटवर्क लेयर का होता है।

नेटवर्क लेयर का कार्य

  1. इसका मुख्य काम डिवाइसों को IP Address प्रदान करना होता है.

  2. इसका कार्य data packets को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में पहुँचाने का होता है.

  3. नेटवर्क लेयर की मुख्य जिम्मेदारी inter-networking की भी होती है.

  4. यह data packets के header में source और destination address को add करती है. इस address का इस्तेमाल इन्टरनेट में devices को identify करने के लिए किया जाता है.

  5. इस layer का काम routing का भी है. यह सबसे अच्छे path (रास्ते) को निर्धारित करती है.

  6. इसका कार्य switching का भी होता है.

Transport layer (ट्रांसपोर्ट लेयर)

ट्रांसपोर्ट लेयर OSI मॉडल की चौथी लेयर है, इसे सेगमेंट यूनिट भी कहा जाता है। इस लेयर का इस्तेमाल डेटा को नेटवर्क के बीच सही तरीके से ट्रान्सफर करने के लिए किया जाता है। यह लेयर यह देखती है कि डेटा में कोई error (त्रुटी) ना हो.

यह लेयर यह भी सुनिश्चित करती है कि हमने जिस क्रम में डेटा भेजा है वह हमें उसी क्रम में प्राप्त हुआ है. इस लेयर का कार्य दो कंप्यूटरों के मध्य कम्युनिकेशन को उपलब्ध कराना भी है।

Transport Layer को end to end लेयर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह डेटा को ट्रान्सफर करने के लिए point to point कनेक्शन प्रदान करता है.

यह लेयर दो प्रकार की service (सेवाएं) प्रदान करता है पहली connection oriented और दूसरी connection less.

Transport Layer के दो प्रमुख protocols होते हैं:-

  1. Transmission Control Protocol (ट्रांसमिशन कण्ट्रोल प्रोटोकॉल)

  2. User Datagram Protocol (यूजर डाटाग्राम प्रोटोकॉल)

Transport Layer के कार्य

  1. Transport Layer का मुख्य कार्य data को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर तक ट्रान्सफर करना है.

  2. यह दो कंप्यूटरों के बीच कम्युनिकेशन की सुविधा प्रदान करता है.

  3. इसका काम point to point कनेक्शन प्रदान करता होता है.

  4. जब यह लेयर उपरी layers से message को receive करती है तो यह message को बहुत सारें segments में विभाजित कर देती है. और प्रत्येक segment का एक sequence number (क्रम संख्या) होता है जिससे प्रत्येक segment को आसानी से identify किया जा सके.

  5. यह flow control और error control दोनों प्रकार के कार्यों को करती है.

  6. इसका काम connection को control करने का भी होता है.

Session layer(सेशन लेयर)

सेशन लेयर OSI model की पांचवी लेयर है जो कि बहुत सारें कंप्यूटरों के मध्य कनेक्शन को नियंत्रित करती है।

सेशन लेयर दो डिवाइसों के बीच कम्युनिकेशन के लिए सेशन प्रदान करता है अर्थात जब भी कोई यूजर कोई भी वेबसाइट खोलता है तो यूजर के कंप्यूटर तथा वेबसाइट के सर्वर के बीच एक सेशन का निर्माण होता है।

आसान शब्दों में कहें तो “सेशन लेयर का मुख्य कार्य यह देखना है कि किस प्रकार कनेक्शन को establish, maintain तथा terminate किया जाता है।”

Session Layer के कार्य

  1. सेशन लेयर का मुख्य काम दो डिवाइसों के बीच session को स्थापित करना, मेन्टेन करना, और समाप्त करना होता है.

  2. session layer जो है वह dialog controller की भांति कार्य करती है. यह दो processes के मध्य dialog को create करती है.

  3. यह synchronization के कार्य को भी पूरा करती है. अर्थात् जब भी transmission में कोई error आ जाती है तो ट्रांसमिशन को दुबारा किया जाता है.

Presentation layer (प्रेजेंटेशन लेयर)

Presentation लेयर OSI मॉडल का छटवां लेयर है। इस लेयर का प्रयोग डेटा का encryption तथा decryption के लिए किया जाता है। इसे डेटा compression के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। यह लेयर ऑपरेटिंग सिस्टम से सम्बंधित है।

प्रेजेंटेशन लेयर को syntax layer भी कहते हैं क्योंकि यह डेटा के syntax को सही ढंग से maintain करके रखता है.

प्रेजेंटेशन लेयर के कार्य (functions)

  1. इस layer का कार्य encryption और decryption का होता है. एन्क्रिप्शन के द्वारा हम अपने डेटा को सुरक्षित रख सकते हैं. encryption को पूरा पढने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें encryption क्या है

  2. इसका मुख्य काम compression का भी है. compression बहुत जरुरी होता है क्योंकि हम data को compress करके उसके size को कम कर सकते है.

  3. यह ट्रांसलेशन का काम भी करता है अर्थात् यह डेटा को ट्रांसलेट करता है.

Application layer (एप्लीकेशन लेयर)



एप्लीकेशन लेयर OSI model का सातवाँ (सबसे उच्चतम) लेयर है। एप्लीकेशन लेयर का मुख्य कार्य हमारी वास्तविक एप्लीकेशन तथा अन्य लयरों के मध्य interface कराना है।

एप्लीकेशन लेयर end user के सबसे नजदीक होती है, यह end users को network services प्रदान करता है.

इस लेयर के अंतर्गत HTTP, FTP, SMTP तथा NFS आदि प्रोटोकॉल आते है। यह लेयर यह नियंत्रित करती है कि कोई भी एप्लीकेशन किस प्रकार नेटवर्क से access करती है।

एप्लीकेशन लेयर के कार्य

  1. Application layer के द्वारा यूजर computer से files को access कर सकता है और files को retrieve कर सकता है.

  2. यह email को forward और स्टोर करने की सुविधा भी देती है.

  3. इसके द्वारा हम डेटाबेस से directory को access कर सकते हैं.

एक non-technical बात

OSI model में 7 layers होती है उनको याद करना थोडा मुश्किल होता है इसलिए नीचे आपको एक आसान तरीका दिया गया है जिससे कि आप इसे आसानी से याद कर सकें:- P- Pyare (प्यारे) D- Dost (दोस्त) N- Naveen (नवीन) T- tumhari (तुम्हारी) S- Shaadi (शादी) P- Par (पर) A- Aaunga (आऊंगा).

Advantage of OSI model in Hindi – ओएसआई मॉडल के लाभ

इसके लाभ निम्नलिखित है:-

1:- यह एक generic model है तथा इसे standard model माना जाता है.

2:- OSI model की layers जो है वह services, interfaces, तथा protocols के लिए बहुत ही विशिष्ट है.

3:- यह बहुत ही flexible मॉडल होता है क्योंकि इसमें किसी भी protocol को implement किया जा सकता है.

4:- यह connection oriented तथा connection less दोनों प्रकार की services को support करता है.

5:- यह divide तथा conquer तकनीक का प्रयोग करता है जिससे सभी services विभिन्न layers में कार्य करती है. इसके कारण OSI model को administrate तथा maintain करना आसान हो जाता है.

6:- इसमें अगर एक layer में change कर भी दिया जाए तो दूसरी लेयर में इसका प्रभाव नहीं पड़ता है.

7:- यह बहुत ही ज्यादा secure तथा adaptable है.

Disadvantage of OSI model in Hindi

इसकी हानियाँ निम्नलिखित है:-

1;- यह किसी विशेष protocol को डिफाइन नहीं करता है.

2:- इसमें कभी कभी नए protocols को implement करना मुश्किल होता है क्योंकि यह model इन protocols के invention से पहले ही बना दिया गया था.

3:- इसमें services का duplication हो जाता है जैसे कि transport तथा data link layer दोनों के पास error control विधी होती है.

4:- यह सभी layers एक दूसरे पर interdependent होती है.

OSI Model और TCP/IP के बीच अंतर (difference)

OSI ModelTCP/IP ModelOSI का पूरा नाम open system interconnection है.इसका पूरा नाम transmission control protocol / internet protocol है.इसे ISO ने विकसित किया है.इसे APRANET ने विकसित किया है.इसमें 7 लेयर होती है.इसमें 4 layer होती है.यह मॉडल केवल connection oriented होता है.यह connection oriented और connection less दोनों प्रकार का होता है.यह vertical एप्रोच को follow करता है.यह horizontal एप्रोच को follow करता है.इस मॉडल का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है.इस model का उपयोग ज्यादा किया जाता है.

Characteristics of OSI model in HindiOSI मॉडल की विशेषताएं

अब हम इसकी विशेषताओं को जानेंगे. जो कि निम्न हैं:-

  1. यह मॉडल दो layers में विभाजित होता है. एक upper layers और दूसरा lower layers.

  2. इसकी upper layer मुख्यतया application से सम्बन्धित issues को handle करती है और ये केवल software पर लागू होती हैं. application लेयर, end user के सबसे नजदीक होती है.

  3. ओएसआई मॉडल की lower layers जो है वह data transport के issues को हैंडल करती है. data link layer और physical लेयर hardware और software में लागू होती है. फिजिकल लेयर सबसे निम्नतम लेयर होती है और यह physical medium के सबसे नजदीक होती है. फिजिकल लेयर का मुख्या कार्य physical medium में data या information को रखना होता है.

Exam में पूछे जाने वाले प्रशन

OSI model क्या है?ओएसआई मॉडल एक रेफेरेंस मॉडल है जिसका इस्तेमाल नेटवर्क में दो users के बीच डाटा को send तथा receive करने के लिए किया जाता है. ओएसआई मॉडल में कितनी layers होती हैं?इसकी 7 लेयर्स होती है. ओएसआई मॉडल का पूरा नाम क्या है?इसका पूरा नाम ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन होता है. इसे ISO ने विकसित किया है.


निवेदन:- OSI Model in Hindi की यह पोस्ट आपको कैसी लगी कमेंट के द्वारा बताइए तथा इसे अपने दोस्तों के साथ share करें. आपके इससे related कोई सवाल है या किसी और subjects को लेकर आपके सवाल हो तो आप comment करके बता सकते है. मैं उसे एक दो दिन वेबसाइट पर publish करूँगा. thanks.

By Tech Guru Vedansh

Network Engineer

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